बात से मन हल्‍का होता है

Thursday, February 12, 2009

क्‍या सुधर गया पाकिस्‍तान?


आखिरकार पाकिस्‍तान ने मान लिया कि मुम्‍बई बम धमाकों की व्‍यूहरचना उसी की सरजमीं पर रची गई थी। अब उसे यह भी मान लेना चाहिए कि पाकिस्‍तान की धरती से न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में आतंकवाद को बढावा दिया जा रहा है। मुम्‍बई बम धमाकों की  जिम्‍मेदारी पाकिस्‍तान ने तब ली है, जब भारत ने ऐसे सबूत प्रस्‍तुत किए, जिन्‍हें गलत ठहराना उसके बूते से बाहर था। यह भारतीय गुप्‍तचर एजेंसियों के लिए बडी सफलता है तो भारतीय कूटनीति की विजय भी। भारत ने धमाकों से संबंधित प्रमाण जुटाने में त्‍वरित गति दिखाई तो सबूतों की फाइल पाकिस्‍तान सहित दुनिया के अन्‍य देशों को भी दी ताकि पाक अपनी आदत के अनुरूप इस बार झूठ नहीं बोल सके। किसी भी परिस्थिति में पाकिस्‍तान ने यह स्‍वीकार किया हो, हमें इसका स्‍वागत ही करना चाहिए। भारत सरकार की तरफ से प्रणव मुखर्जी और चिदम्‍बरम के बयान भी पाकिस्‍तानी कार्रवाई का स्‍वागत कर रहे हैं। अगर पाकिस्‍तान का यह रुख बरकरार रहा तो निश्चित रूप से उसकी धरती पर पनप रहे आतंकवाद को पूरी तरह खत्‍म किया जा सकता है। अमरिका सहित दुनिया के सभी आतंकवाद प्रभावित देश इस संकट में पाकिस्‍तान के साथ खडा होकर उसे आतंकवाद मुक्‍त देश बनाने में मदद कर सकता है। पाकिस्‍तानी पत्रकार मित्रों के साथ जितनी बार बातचीत हुई कभी मुझे ऐसा नहीं लगा कि पाकिस्‍तान का आम आदमी किसी तरह के आतंकवाद से सहमत है। उल्‍टा स्‍वयं पाकिस्‍तानी आतंकवाद से पीडित है। हालात इतने बदतर है कि अब भारत से ज्‍यादा आतंककारी घटनाएं पाकिस्‍तान में होने लगी है। पहले से चरमराई अर्थव्‍यवस्‍था पाकिस्‍तान के होनहार और कुशाग्र युवा वर्ग को आगे आने का मौका  नहीं दे रहा। आजादी से पहले जिस तरह भारत के युवाओं  को विदेश में पढकर ही अपना भविष्‍य बनाना होता था ठीक वैसे ही इन दिनों पाकिस्‍तान में हो रहा है। वहां का युवा भी भारत की तरह आगे बढकर स्‍वयं को स्‍थापित करना चाहता है। पाकिस्‍तानी पत्रकार बतुल ने पिछले दिनों मुझे मेल के माध्‍यम से बताया कि वो अब पत्रकार नहीं है बल्कि पाकिस्‍तान की असिस्‍टेंट ऑडिट जनरल हो गई है। उसका कहना था कि वो पाकिस्‍तान ब्‍यूरोक्रेट का हिस्‍सा हो गई है। नेपाल में हमारी मुलाकात में भी उसका यही सपना था कि वो ब्‍यूरोक्रेट बने। न सिर्फ बतुल बल्कि पाकिस्‍तान के अधिकांश युवा कुछ कर गुजरने की ललक रखते हैं। लेकिन वहां के हालात इसकी इजाजत नहीं दे पाते। अव्‍यवस्‍था के आलम में आम आदमी अपनी इच्‍छाशक्ति‍ के मुताबिक काम नहीं कर पात। बतुल आम परिवार से नहीं है और उसने पत्रकारिता का मुकाम हासिल कर वहां की व्‍यवस्‍था को समझा। तभी ब्‍यूरोक्रेट बन पाई। दरअसल इस अव्‍यवस्‍था का सबसे बडा कारण आतंकवाद है। पाकिस्‍तान से आतंकवाद का खात्‍मा अब न सिर्फ दुनिया के लिए बल्कि स्‍वयं पाक के लिए भी अवश्‍यम़भावी हो गया है। जिस गति से पाकिस्‍तान की विकास दर गिरती जा रही है, करीब उतनी गति से वहां आतंककारी घटनाएं बढ रही है। बेरोजगारी का ग्राफ वहां भारत से भी ज्‍यादा गति से आगे बढ रहा है। भारत की मजबूत आर्थिक व्‍यवस्‍था ने यहां काफी हद तक मध्‍यम श्रेणी के परिवारों को सहजता से जीवन यापन का अवसर दे रखा है लेकिन पाकिस्‍तान में मध्‍यम श्रेणी का परिवार संकट में है। पाकिस्‍तान में आम आदमी का औसत वेतन भारतीय युवक की तुलना में काफी कम है। हम छठा वेतन आयोग लागू करवाकर लिपिक को ही पंद्रह से बीस हजार रुपए महीने के दे रहे हैं जो पाकिस्‍तान में किसी न किसी अधिकारी को मिलते हैं। हालात कुछ भी हो अब भारत और पाकिस्‍तान को एक मंच पर आकर आतंकवाद के खात्‍मे के लिए संघर्ष करना ही होगा। जिस तरह अमरिकी प्रधान बराक ओबामा पाकिस्‍तानी आतंकवाद की खिलाफत कर रहे हैं उससे पाक पर दबाव भी बढा है, भारत को इसका सकारात्‍मक पक्ष लेते हुए कार्रवाई करनी चाहिए। मुम्‍बई धमाकों में पाकिस्‍तानी सहयोग के आधार पर जांच को आगे बढाना चाहिए। यह भी सत्‍य है कि पाकिस्‍तान को पूरी तरह से सहजता से लेना भी भूल होगी। निश्चित रूप से भारतीय रक्षा, विदेश और गृह मंत्रालय पाकिस्‍तानी तंत्र से अधिक सूझबूझ रखने वाला है। हम तो इतना ही चाहते हैं कि दोनों देशों में आतंकवाद खत्‍म हो। बिगडा हुआ भाई सुधर जाए और अब नहीं सुधरे तो दो कानों के नीचे लगाकर सुधार दिया जाए। कुछ अच्‍छा करने के लिए कई बार कडे कदम भी उठाने पडते हैं। 

1 comment:

satyaveer jain said...

pakistan nahi sudhrega jab tak hum esrial ki niti nahi apnate, kabhi sansad pe hamla, kabi jaipur blast. amhadabad blast, mumbai blast, hum sirf kehte rehte hai sudhar jao, humare sbra ka imtihan mat lo, desh ki janta marti rehati hai neta sirf bayan bazi karte rehate hai, hum mombati jalakar saheed huve logon ko sradhanjali dete rehte hai, hume mombatiyo ki nahi banduko ki jarurat hai saheedo ko sradhanjali dene ke liye. jab tak hum nahi jagenge desh ke dushman humare bhai behno ko yu hi marte rahenge.