बात से मन हल्‍का होता है

Monday, January 26, 2009

कैसा गण और कैसा तंत्र?


आज कौन सा गणतंत्र दिवस है। मुझे भी साठवां गणतंत्र दिवस लिखने में असमंजस हो रहा है, कहीं उनसठवा तो नहीं है। मुझे ही क्‍यों इस हिन्‍दूस्‍तान में मेरे जैसे हजारों युवा होंगे , जिन्‍हें ठीक से याद नहीं कि हम गणतंत्र दिवस की कौनसी सुबह मना रहे हैं। कारण साफ है कि हमें गणतंत्र दिवस से कोई सरोकार ही नहीं है। सरकारी कर्मचारी इसे अवकाश पर्व के रूप में जानते हैं तो बच्‍चे एक दिन स्‍कूल से मुक्ति के रूप में। लगभग हर जिले में यह आयोजन प्रशासन के लिए एक बडी 'आफत' है, क्‍योंकि छोटी सी खामी बडा मुद़दा बन सकती है। इसलिए जैसे तैसे इसका आयोजन ठीक ठाक करने की कवायद होती है। लगभग हर जगह गणतंत्र दिवस को महज औपचारिकत रूप से मनाया जाता है। आम आदमी भी कहां गणतंत्र दिवस के मायने समझ पा रहा है। मेरे इस ब्‍लॉग को कुछ विदेशों में रहने वाले हिन्‍दूस्‍तानी भी पढ रहे हैं, मैं बताना चाहूंगा कि देश में ही अधिकांश जिला मुख्‍यालयों पर यह पर्व तो मनाया जाता है लेकिन यहां दर्शकों के पवेलियन खाली ही दिखाई देते हैं। बात सामान्‍य विद्यालय की हो या फिर बडे महकमें की, गणतंत्र दिवस महज औपचारिक है। 
दसअसल गणतंत्र के मायने हम समझ ही नहीं पा रहे हैं। हर रोज इसी उसी कानून व्‍यवस्‍था और संविधान की धज्जियां उडा रहे हैं जिसकी स्‍थापना आज के दिन हुई थी। यह चिंता का विषय है कि हमारे देश में कानून बाद में बनता है और उसको तोडने की योजना पहले ही बननी शुरू हो जाती है। हम अपने अधिकारों के प्रति तो आवश्‍यकता से अधिक सजग है लेकिन अपने दायित्‍वों को भूल जाते हैं। कर्मचारी छठे वेतन आयोग के लिए हडताल भी कर सकते हैं और नारेबाजी भी लेकिन सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक कार्यालय में बैठना मुश्किल है, अधिकारी जिस कानून की पालना के लिए दूसरे को सजा देते हैं, स्‍वयं उसकी पालना करने में स्‍वयं को 'छोटा' महसूस करते हैं। सिर पर हेलमेट नहीं लगाने पर पकडे जाने पर जुर्माना देने के बजाय दस लोगों को फोन करते हैं और अपना लाभ पाने के लिए दूसरों का हक छोड देते हैं। अस्‍पताल में मुफ़त की दवा और इलाज पाने के लिए बडी शान से 'पूअर' होने का प्रमाण चिकित्‍सक से ले लेते हैं, नौकरी पाने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र जुटा लेते हैं। भ्रष्‍टाचार तब तक नहीं करते जब तक यह अपने बूते में नहीं हो। बाहर बैठकर खूब बोलते है और अंदर जिम्‍मेदारी संभालने पर पुराने को भला कहलवा देते हैं, विपक्ष में रहकर सरकार की बुराई नेताओं का धर्म है तो पक्ष में रहकर परिजनों को लाभ पहुंचाना ही असली तंत्र की पहचान है। 

मैं यहां कुछ प्रश्‍न रख रहा हूं, अगर इनका जवाब हां है तो आप स्‍वयं को एक अंक देवें और नहीं है तो स्‍वयं को उस प्रश्‍न का शून्‍य अंक देवें। दस अंक में से स्‍वयं की निष्‍ठा का आकलन करें।
1 आप अपने कार्यालय में समय पर पहुंचते हैं और समय पर ही वापस निकलते हैं।
2 आपने कभी भी अनुपस्थित होकर भी अगले दिन रजिस्‍टर में उपस्थिति दर्ज नहीं कराई।
3 यातायात नियमों की पालना हमेशा की है।
4 किसी से एक रुपया भी रिश्‍वत के रूप में नहीं लिया।
5 नियमों से हटकर कभी कोई काम नहीं किया।
6 कहीं नियमों की अवहेलना होने पर संबंधित सूचना मिली तो अधिकारी व प्रबंधन को इससे अवगत कराया।
7 अपने बच्‍चों से कभी किसी तरह का कोई झूठ न बोला और न बोलने के लिए कहा।
8 कभी किसी गरीब का लाभ उठाने का प्रयास नहीं किया।
9 कभी अपने पद के नाम पर किसी तरह की सहायता नहीं ली।
10 कभी अपने देश के संविधान को पढा है।
उम्‍मीद है आप अपना आंकलन पूरी ईमानदारी के साथ करेंगे।
सपना है कि जिस तरह देश में स्‍वतंत्रता आई, ठीक वैसे ही एक दिन गणतंत्रता भी आएगी।

3 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

हाँ हमारा गणतंत्र साथिया गया भाई.

Anonymous said...

"जिस तरह देश में स्‍वतंत्रता आई, ठीक वैसे ही एक दिन गणतंत्रता भी आएगी".. ये सही कहा..

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं..

अक्षत विचार said...

सही खबर ली गंणों की